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फूलों की खेती

किसान करे कैवेंडिश केले समूह के केले की खेती, शानदार कमाई के बाद भूल जायेंगे धान-गेहूं उपजाना

किसान करे कैवेंडिश केले समूह के केले की खेती, शानदार कमाई के बाद भूल जायेंगे धान-गेहूं उपजाना

केले की खेती (Kele ki kheti / Banana Farming) एक ऐसी चीज है जिस पर आपको विचार करना चाहिए। यदि आप कम जमीन होने के बावजूद भी महत्वपूर्ण लाभ कमाना चाहते हैं, तो कैवेंडिश (Cavendish banana) समूह के केलों की खेती करना शुरू कर दें। केले की खेती कभी दक्षिण भारत तक सीमित थी, लेकिन अब यह उत्तर भारत में व्यापक रूप से प्रचलित हो रही है। एक हेक्टेयर में केले की खेती से करीब 8 लाख रुपये का मुनाफा कमाया जा सकता है। बाजार में सुपरफूड की मांग काफी बढ़ गई है। किसान अब धान-गेहूं और अन्य फसलों कि जगह फल और फूलों की खेती करने लगे हैं, ऐसे में केले की खेती कर किसान अपनी उपज पर अधिक फायदा प्राप्त कर सकते हैं। केले विटामिन, खनिज, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होते हैं, और इनमें वसा की मात्रा भी कम होती है। किसान केले कि खेती में अधिक रुचि ले रहे हैं क्योंकि बाजार में इसकी मांग बहुत ही तेजी से बढ़ रहीं हैं।

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कॉवेंडिश या कैवेंडिश समूह का केला, जो ड्रिप सिंचाई और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से प्रति इकाई क्षेत्र में उपज पर काफ़ी ज्यादा लाभ देता है। किसानों द्वारा कैवेंडिश केले को अब लगभग 60% क्षेत्र में उगाया जा रहा है, इसका मुख्य कारण पनामा विल्ट रोग (Panama disease or Fusarium wilt or Bana Wilt) के प्रति इसकी प्रतिरोध क्षमता है और यह अन्य केलों के समूह की तुलना में कहीं अधिक उत्पादन करता है। भारत में केले की लगभग 20 प्रजातियां उगाई जाती हैं।

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केले की लगभग 1000 से अधिक किस्मों को दुनिया भर में उगाया जाता है। कॉवेंडिश समूह का केला अपने छोटे तनों के कारण, तूफान से होने वाले नुकसान जैसे पर्यावरणीय कारकों के प्रति कम संवेदनशील होते हैं और प्रति हेक्टेयर उच्च पैदावार देते हैं। कॉवेंडिश केले के पौधे प्राकृतिक आपदाओं से तेजी से उबरने के लिए भी प्रसिद्ध है। कैवेंडिश केले का वार्षिक वैश्विक उत्पादन लगभग 50 बिलियन टन है। आम के बाद केला भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फलों में से एक है, लगभग 14.2 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के साथ, भारत केले के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है। कॉवेंडिश समूह का केले की इस प्रजाति को पारंपरिक रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है।

कैवेंडिश समूह की किस्म ग्रैंड नैने (एएए) की करें खेती

केले के प्रसिद्ध कैवेंडिश समूह की एक किस्म को "ग्रैंड नैने (एएए)" कहा जाता है। यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है। इसका पौधा 6.5 से 7.5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। ग्रैंड नैन केले किस्म के फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और इसकी फलों की गुणवत्ता हमारी देशी किस्मों के केलों की तुलना में अधिक होती है।

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1990 के दौरान यह प्रजाति भारत में आई थी, इस प्रजाति के आते ही बसराई और रोबस्टा प्रजाति का विस्थापन होना शुरू हो गया। कैवेंडिश किस्म का यह केला महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों के बीच बेहद पसंद किया जाता है, इस प्रजाति के पौधे 12 महीनों में परिपक्व हो जाते हैं और 2.2 से 2.7 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इसकी खेती कर किसान कम समय में अधिक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। केले पहले केवल दक्षिण भारत में उगाए जाते थे, लेकिन अब वे उत्तर भारत में भी उगाए जा रहे हैं। केले की खेती करने वाला किसान पारंपरिक खेती जैसे गेहूं-धान-गन्ना की खेती करना छोड़ ही देता है, क्योंकि केले की खेती से एक वर्ष में होने वाले लाभ को कई वर्षों तक गेहूं-धान-गन्ना के खेती से पूरा नहीं किया जा सकता है।

केले कब और कैसे उगाए जाते हैं?

जून-जुलाई का महीना केले लगाने का सबसे अच्छा समय है, कुछ किसान इसे अगस्त तक लगाते हैं। इसे जनवरी और फरवरी में भी उगाया जाता है। यह फसल 12-14 महीने में पूरी तरह से पक जाती है। केले के पौधे को लगभग 8*4 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर में 3000 तक केले के पौधे लगाए जाते हैं। केले के पौधे नम वातावरण में पनपते हैं और उनमें अच्छी तरह विकसित होते हैं। जब केले में फल लगने लगे तो फलों की सुरक्षा के लिए सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे गंदे न हों और कीड़े नही लगे इसका ध्यान रखना चाहिए, केला बीजों से नहीं बल्कि पौधे को लगा कर इसकी खेती की जाती है। केले के पौधे आपको कई जगहों पर मिल जाएंगे आप इसे नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, दूसरा आप केले की उन्नत किस्में प्रदान करने वाली कंपनियों से सीधे बात कर सकते हैं, जो आपके घर तक केले के पौधे पहुंचाएगी।

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वहीं सभी राज्य सरकारें भी केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए पौधे उपलब्ध कराती हैं इसलिए आप अपने जिले के कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं, तो आप यदि एक नया कृषि व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक हैं और अन्य फसलों के उपज पर मुनाफा अर्जित नही होने से परेशान हैं तो केले की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह उपजाने में आसान और मुनाफे के मामले में गजब फायदा देने वाला है। अन्य कृषि व्यवसायों की तरह वाणिज्यिक केले की खेती के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती है।
इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

बिहार में राज्य सरकार की तरफ से कंदीय फूलों की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक सबसिडी प्रदान की जा रही है। योजना का फायदा उठाने के लिए कृषक भाई आधिकारिक साइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

बिहार सरकार की ओर से किसानों को फूलों का उत्पादन करने के लिए निरंतर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने फिलहाल एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत कंदीय फूल की खेती करने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। 

योजना का फायदा उठाने के लिए किसान आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाऐगा

बतादें, कि बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर कंदीय फूलों की खेती हेतु लागत 15 लाख रुपये रखी है। इस पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान करेगी। इस हिसाब से किसानों को सात लाख 50 हजार रुपये मिलेंगे। 

सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए किसान आज ही आधिकारिक वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह अपने निकटतम उद्यान कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं। 

योजना के अंतर्गत फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड, बैंक पासबुक की प्रति, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फोन आदि अपने पास जरूर रखने होंगे। 

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बाजार में फूलों की प्रचंड मांग है

बतादें, कि कंदीय फूल को गमले व जमीन दोनों में उगाया जा सकता है। इन फूलों की सजावट के काम में जरूरत पड़ती है। साथ ही बुके में भी इन फूलों का उपयोग किया जाता है। 

बाजार में ये फूल अच्छी-खासी कीमत में बिकते हैं। किसान भाई कंदीय फूलों की खेती कर कम समय में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। जानिए किन फूलों को कंदीय फूल कहा जाता है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऑक्जेलिक, हायसिन्थ, ट्यूलिप, लिली, नर्गिसफ्रिजिआ, डेफोडिल, आइरिस, इश्किया, आरनिथोगेलम को कंदीय फूल कहा जाता है।

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मी का समय भारत मे बहुत सारी फसलों और पौधों को उगाने के लिए काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे मे यदि आप भी अच्छे फूलों वाले और अपने बाग/बगीचों को रंगीन बनाना चाहते है, तो यह समय बहुत ही अच्छा है, फूलों वाले पौधों को लगाने के लिए। दर - असल गर्मी के समय मे ज्यादा वस्पीकरण होने के कारण जलवायु मे परिवर्तन होता है जिससे पौधों का विकास अच्छे से होता है। आइये जानते हैं गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी। इन पौधों को लगाने के लिए आप सबसे अच्छा समय मार्च माह से लेकर अप्रैल माह तक मान सकते है। क्योंकि इस समय ना ही तेज हवाएं चलती हैं और ना ही ज्यादा गर्मी होती है ऐसे मे आप एक शांत दिन चुनकर जीनिया , सदाबहार और बालसम जैसे पौधों की बुवाई रोपाई करना शुरू कर सकते हैं। ऐसे मे आज हम आपको तीन ऐसे गर्मी की ऋतु में लगाए जाने वाले पौधों के बारे मे बताएंगे :- जीनिया सदाबहार और बालसम

जीनिया (Zinnia)

Zinnia ke phool जीनिया बहुत ही खूबसूरत और रंगीन फूलों वाला बगीचे की शान बढ़ाने वाला फूल होता है। जीनिया काफी तेज गति से उगता है और इसे उगाने मे किसी भी प्रकार की ज्यादा परेशानी भी नहीं होती है। जीनिया पौधे को हम वैज्ञानिक जोहान ट्वीट जिन के नाम से भी जान सकते हैं। जीनिया मे खूबसूरत फूल लगने के कारण यह सबसे ज्यादा तितलियों और अन्य कीड़ों मकोड़ों को बहुत ही ज्यादा लुभाता है। ऐसे मे कई सारी बीमारियां और पौधों मे फूल झड़ने और पौधों के मुरझाने का भी डर सताया रहता है। ये भी पढ़े: गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी जीनिया की उत्पत्ति सबसे पहले उत्तरी अमेरिका मे हुई थी उसके बाद यह अन्य सभी देशों मे वितरित होने लगा। तो चलिए जानते हैं जीनिया पौधे की खेती हम किस प्रकार कर सकते हैं :-

1.जीनिया पौधे की सिंचाई इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे की सिंचाई हमेशा उसकी जड़ों पर की जाती हैं ना कि उसकी टहनियों शाखाओं और पत्तियों पर। क्योंकि यह पौधा बहुत कम समय में विकसित होने लगता है और ऐसे मे अगर हम पत्तियों पर पानी डालेंगे तो अन्य प्रकार के कीड़े मकोड़े और बीमारियां लगने का डर रहता है। प्रति सप्ताह दो से तीन बार जीनिया की सिंचाई अवश्य रूप से करनी चाहिए। गर्मी की ऋतु में वाष्पीकरण से बचने के लिए जब जीनिया का पौधा बड़ा हो जाता है तो हम उसके आसपास पत्तियां और घास फूस डाल सकते हैं।

2. जीनिया पौधे की कटाई और बीजों का सही संग्रह इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे के बीजों को एकत्रित करने के लिए सबसे पहले आपको इस पौधे के बड़े-बड़े फूलों को नहीं काटना होगा। यदि आप इस पौधे के फूलों को काटना बंद नहीं करेंगे तो फिर बीज नहीं आएंगे। जब फूल एक बार बीज देना शुरू करें तब आप अपने हाथों द्वारा धीरे से मसलकर बीजों को किसी भी बर्तन मैं धूप में रख कर सुखा दें। इस प्रकार आप जीनिया पौधे की कटाई और बीजों को एकत्रित कर पाएंगे।

3. जीनिया पौधे मे लगने वाले कीड़े और बीमारियों का समाधान इस प्रकार करें :-

पौधों में कीड़े लगना आम बात हैं चाहे वह जीनिया हो सदाबहार हो या फिर बालसम लेकिन जीनिया के पौधों में अक्सर कीड़े बहुत ही कम समय में पड़ने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में आप अच्छे से अच्छे कीटनाशकों का छिड़काव करें सप्ताह मे दो-तीन बार। ये भी पढ़े: जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें जीनिया के पौधों मे पढ़ने वाले कीट पतंगों को हम अपनी आंखों से आसानी से देख सकते हैं ऐसे में आप सुबह सुबह जल्दी कीटनाशकों का छिड़काव करें और समय-समय पर पौधों को झाड़ते रहे।

गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे : सदाबहार

sadabahar phool सदाबहार जिसका मतलब होता है हर समय खीलने वाला पौधा। सदाबहार एकमात्र ऐसा पौधा है जो भारत मे पूरे 12 महीना खिला रहता है। भारत मे इसकी कुल 8 जातियां हैं और इसके अलावा इसकी बहुत सारी जातियां बाहरी इलाकों जैसे मेडागास्कर मे भी पाई जाती हैं। सदाबहार बहुत सारी बीमारियों जैसे जुखाम सर्दी आंखों में होने वाली जलन मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में करने के लिए भी किया जाता है। यह बहुत ही लाभदायक और फायदेमंद पौधा होता है। भारत में इसे बहुत सारे इलाकों में सदाबहार और सदाफुली भी कहते हैं।

1. सदाबहार पौधे की बुवाई ईस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की बुवाई करने के लिए सबसे पहले आप कम से कम 6 इंच की गहरी क्यारी तैयार करें। इससे पौधे को अच्छे से उगने में काफी सहायता होती हैं और इसकी जड़े भी मजबूत रहती हैं। जब आप इसकी रोपाई करें उससे पहले आप यह तय कर लें कि 1 इंच मोटी परत की खाद को मिट्टी के अंदर अच्छे से मिलाएं। सदाबहार पौधे की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर माह से फरवरी माह के बीच में होता है। इस समय सदाबहार पौधे को ना ही ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती हैं और ना ही ज्यादा खाद उर्वरक की। ये भी पढ़े: सूरजमुखी खाद्व तेलों में आत्मनिर्भरता वाली फसल

2. सदाबहार पौधे की सिंचाई और खाद व्यवस्था इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की रोपाई करने के कम से कम 3 महीने के बाद आपको 20-20 दिनों के अंतराल से सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। सदाबहार पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती हैं ऐसे मे अगर आप ज्यादा सिंचाई करेंगे तो यह इतना ज्यादा पानी सहन नहीं कर पाएगा और नष्ट होने की संभावना ज्यादा रहेगी। इसके आसपास किसी भी प्रकार के खरपतवार को ना रहने दे। अप्रैल माह से लेकर जुलाई माह तक सदाबहार पौधे की अच्छे से सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि इस समय गर्मी की ऋतु में बहुत ज्यादा वाष्पीकरण होता है। ऐसे मे पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं। समय समय पर खाद और कीटनाशकों का छिड़काव करें ताकि पौधों मे किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी ना लगने पाए।

3. सदाबहार पौधे की कटाई छटाई इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधा कम से कम 1 साल के समय के अंतराल में पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। सदाबहार पौधे के रोपाई के एक साल बाद आप तीन-तीन महीने के अंतराल में इसकी टहनियां पत्तियां और बीज और फलों को आप अलग-अलग तरीकों से एकत्रित करें। सबसे पहले आप इसके फलों को एकत्रित करें और अवांछित शाखाओं और टहनियों को हटा दें। फूलों से निकाले गए बीजों को आप गर्मी के मौसम में धूप में रख कर अच्छे से अंकुरित करना ना भूले।

बालसम

balsam phool ki kheti बालसम यानि की पेरू जिसका आमतौर पर सबसे ज्यादा उपयोग बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। बालसम की खेती संपूर्ण भारत मे की जाती है और सबसे ज्यादा इन राज्यों में कर्नाटक, बंगाल , उतर प्रदेश ,हरियाणा ,बिहार और पंजाब शामिल है। इसकी पैदावार इन राज्यों में सबसे ज्यादा होती है।यह कैंसर और यूरिन से संबंधित बीमारियों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदे मंद है। साथ ही साथ बुखार , सर्दी , ठंडी और अन्य सर्द ऋतू की बीमारियों के लिए भी लाभदायक है। बलसम की खेती के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों का होता है। मई और जुलाई माह के अंदर अंदर बालसम के पौधों की बुवाई कर दी जाती है। बलसाम के पौधों के बीजों को संपूर्ण रूप से विकसित यानी की अंकुरित होने मैं 10-12 दिनों का समय लगता है। ये भी पढ़े: ईसबगोल की खेती में लगाइये हजारों और पाइए लाखों

1. बाल सम के पौधे की बुवाई इस प्रकार करे :-

बालसम के पौधे को उगाने के लिए सबसे पहले आप यह देख ले कि मिट्टी उपजाऊ हो और अच्छी हो। प्रत्येक बालसम के पौधे को उगाने के लिए उनके बीच में कम से कम 30 से 40 सेंटीमीटर का अंतराल अवश्य रखें। इनकी बुआ जी आप अपने हाथों द्वारा भी कर सकते हैं या फिर हल द्वारा या ट्रैक्टर के द्वारा बड़े पैमाने पर भी कर सकते हैं। बुवाई से पहले बीजों को अंकुरित करना ना भूलें इससे कम समय में बीज विकसित होना शुरू हो जाते हैं।

2. बाल सम के पौधे की सिंचाई और उर्वरक व्यवस्था इस प्रकार करें :-

बालसम के पौधों की शुरुआती दिनों मे सिंचाई करना इतना ज्यादा आवश्यक नहीं होता है। जब इनके फूल आना प्रारंभ हो जाता है उसके बाद आप सप्ताह मे तीन चार बार अच्छे से सिंचाई करें। इसकी सिंचाई करते समय आप साथ में कीटनाशक भी डाल सकते हैं ताकि पौधे को कीट से बचाया जा सके। इसकी सिंचाई आप ड्रिप् माध्यम के द्वारा कर सकते हैं इससे पौधे की जड़ों में पानी जाएगा और ज्यादा वाष्पीकरण भी नहीं होगा। बालसम के पौधे के फूल लगने में लगभग 30 से 40 दिनों का समय लगता है।

3. बालसम के पौधों को कीट पतंगों और बीमारियों से इस प्रकार बचाएं :-

सूरज की रोशनी सभी पौधों को पूर्ण रूप से विकसित होने में काफी लाभदायक होती हैं और ऐसे मे बाल सम के पौधों को भी उगने के लिए सूर्य की धूप की बहुत आवश्यकता होती है। जितने भी कीड़े मकोड़े जो कि फूलों के अंदर टहनियों में छुपे रहते हैं वेद धूप के कारण नष्ट हो जाते हैं। यदि पौधे में कमजोरी यहां पर पत्तियां और टहनियां मुरझाने लगती हैं तो ऐसे में आप समझ जाइए कि किसी भी प्रकार की बीमारी लग चुकी है। ऐसे में आप कीटनाशक और खा दुर्गा सप्ताह में दो-तीन बार छिड़काव अवश्य करें। ऐसा करने से सभी कीट पतंग और अन्य बीमारियां पौधे को विकसित होने से नहीं रोक पाती हैं और पौधे का संपूर्ण रूप से विकास होता है। आशा करते हैं की गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी आपके लिए उपयोगी हो ।
फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

भारत में फूलों की खेती एक लंबे समय से होती आ रही है, लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक एक व्यवसाय के रूप में फूलों का उत्पादन पिछले कुछ सालों से ही शुरू हुआ है. 

समकालिक फूल जैसे गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा, कार्नेशन आदि के बढ़ते उत्पादन के कारण गुलदस्ते और उपहारों के स्वरूप देने में इनका उपयोग काफ़ी बढ़ गया है. 

फूलों को सजावट और औषधि के लिए उपयोग में लाया जाता है. घरों और कार्यालयों को सजाने में भी इनका उपयोग होता है. 

मध्यम वर्ग के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक संपन्नता के कारण बाज़ार के विकास में फूलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है. लाभ के लिए फूल व्यवसाय उत्तम है. 

किसान यदि एक हेक्टेयर गेंदे का फूल लगाते हैं तो वे वार्षिक आमदनी 1 से 2 लाख तक प्राप्त कर सकते हैं. इतने ही क्षेत्र में गुलाब की खेती करते हैं तो दोगुनी तथा गुलदाउदी की फसल से 7 लाख रुपए आसानी से कमा सकते हैं. भारत में गेंदा, गुलाब, गुलदाउदी आदि फूलों के उत्पादन के लिए जलवायु अनुकूल है.

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जहाँ इत्र, अगरबत्ती, गुलाल, तेल बनाने के लिए सुगंध के लिए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं कई फूल ऐसे हैं जिन का औषधि उपयोग भी किया जाता है. कुल मिलाकर देखें तो अगर किसान फूलों की खेती करते हैं तो वे कभी घाटे में नहीं रहते.

भारत में फूलों की खेती

भारत में फूलों की खेती की ओर किसान अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन फूलों की खेती करने के पहले कुछ बातें ऐसे हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. 

यह ध्यान देना आवश्यक है की सुगंधित फूल किस तरह की जलवायु में ज्यादा पैदावार दे सकता है. फिलवक्त भारत में गुलाब, गेंदा, जरबेरा, रजनीगंधा, चमेली, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी और एस्टर बेली जैसे फूलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि फूलों की खेती के दौरान सिंचाई की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए.

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बुआई के समय दें किन बातों पर दें ध्यान

फूलों की बुवाई के दौरान कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है. सबसे पहले की खेतों में खरपतवार ना हो पाए. ऐसा होने से फूलों के खेती पर बुरा असर पड़ता है. 

खेत तैयार करते समय पूरी तरह खर-पतवार को हटा दें. समय-समय पर फूल की खेती की सिंचाई की व्यवस्था जरूरी होती है. वहीं खेतों में जल निकासी की व्यवस्था भी सही होनी चाहिए. 

ताकि अगर फूलों में पानी ज्यादा हो जाये तो खेत से पानी को निकला जा सके. ज्यादा पानी से भी पौधों के ख़राब होने का दर होता है.

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फूलो की बिक्री के लिये बाज़ार

फूलों को लेकर किसान को बाजार खोजने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है, क्योंकि फूलों की आवश्यकता सबसे ज्यादा मंदिरों में होती है. इसके कारण फूल खेतों से ही हाथों हाथ बिक जाते हैं. 

इसके अलावा इत्र, अगरबत्ती, गुलाल और दवा बनाने वाली कंपनियां भी फूलों के खरीदार होती है. फूल व्यवसाई भी खेतों से ही फूल खरीद लेते हैं, और बड़े बड़े शहरों में भेजते हैं.

फूल की खेती में खर्च

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फूलों की खेती में ज्यादा खर्च भी नहीं आता है. एक हेक्टेयर में अगर फूल की खेती की जाए तो आमतौर पर 20000 रूपया से 25000 रूपया का खर्च आता है, 

जिसमें बीज की खरीदारी, बुवाई का खर्च, उर्वरक का मूल्य, खेत की जुताई और सिंचाई वगैरह का खर्च भी शामिल है, फूलों की कटाई के बाद इसे बड़ी आसानी से बाजार में बेचकर शुद्ध लाभ के रूप में लाखों का मुनाफा लिया जा सकता है

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

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बिहार सरकार किसानों को एक बड़ी सौगात दे रही है जिसकी खूब चर्चा हो रही है। दरअसल बिहार सरकार का उद्यान विभाग मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फल और फूलों के बगीचे लगाने के लिए किसानों को 40 से 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, जिससे बिहार के किसानों के चेहरे पर खुशी झलक रही है। मौजूदा दौर में देश के कई राज्यों में किसानों के द्वारा मुख्य फसल की जगह पर तरह तरह के फल और फूलों की खेती की जा रही है।  खेती करने की मुख्य वजह फल और फूलों की घरेलू बाजार के साथ-साथ विश्व की बाजारों मे बढ़ती हुई मांग है।  किसानों को उनके द्वारा उगाए गए फूलों का उचित रेट भी मिल रहा है।  उचित मुनाफा होने के कारण किसान भी जोर–शोर से फल और फूलों की खेती कर रहे हैं।


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भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां के अधिकतर लोग कृषि के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जो अपना भरण-पोषण अपने द्वारा उपजाए गए फसलों को बाजारों में बेचकर करते हैं। मुख्य फसलों की जगह पर फल फूलों की खेती करना आज के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बनकर उभर रहा है। राज्य सरकार और भारत सरकार भी किसानों की आय में बढ़ोतरी और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीम और नए-नए तकनीक के साथ खेती करने का प्रशिक्षण दे रही है। इसी कड़ी में बिहार सरकार ने भी किसानों को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। फलों एवं फूलों की खेती करने के लिए बिहार के किसानों को उद्यान विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री मिशन योजनाओं 40 से 75 प्रतिशत का अनुदान दे रही है। सब्सिडी को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। सरकार सरकार के द्वारा फल और फूलों की खेती करने पर इस तरह से अनुदान देना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।

अभी सिर्फ इन जिले के किसानों को ही मिलेगा लाभ

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार के ट्विटर आईडी पर पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हुई है जिसमें ऑनलाइन आवेदन करने के बारे में भी बताया गया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत आच्छादित जिलों की सूची भी दी गई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले पटना, नालंदा, रोहताश, गया, औरंगाबाद, मुजफ्फर पुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मूंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, बांका और भागलपुर है। वहीं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, नावादा, सारण, सिवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, सुपौल, मधेपुरा, लखीसराय और शेखपुरा है।

जानिए किस फल पर मिल रही है कितनी सब्सिडी

उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत चयनित जिलों के किसानों को ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी उपजाने के लिए 40 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अनानास, फूल की खेती जैसे गेंदा और अन्य फूल, मसाले की खेती और सुगंधित पौधे की खेती (मेंथा) पर 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। बिहार सकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान रखा है। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन का भी गठन किया जा रहा है।


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सबसे ज्यादा यानी 75 फ़ीसदी की सब्सिडी पपीते की खेती पर दी जा रही है, जिससे कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है। लोगों में इस फल की मांग भी काफी ज्यादा रहती है। अगर आप ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्रॉबेरी, पपीता, गेंदे की फूल की खेती और सुगंधित पौधे (मेंथा) की खेती करना चाहते है और आप सरकार द्वारा चयनित जिले के निवासी हैं, तो आप http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करके योजनाओं का लाभ पा सकते हैं। अगर आप इन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क कर सकते हैं और किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर बीज प्राप्त करने कि जानकारी और नए तकनीक के साथ खेती को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।


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भारत के अनेक राज्यों में फल फूल की खेती लोग तेजी से कर रहे हैं। मुख्य तौर पर लोग अब मुनाफा अर्जित करने के लिए ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की उपज करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक वानस्पतिक फल वाला पौधा है जो आम तौर पर मानसून के दौरान या उसके बाद में फलता है। इसे आमतौर पर रोपने के 18-24 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम तक होता है। एक पेड़ में आमतौर पर लगभग 15 से 25 किलो फल लगते हैं, ये फल बाजार में 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकते हैं, लेकिन सामान्य कृषि दर लगभग रु 125 से 200 प्रति किलो। अगर आप इसकी उपज करते हैं तो आप प्रति एकड़ 5-6 टन की औसत उपज पा सकते हैं।


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भले ही बिहार में बड़े उद्योग लग नहीं पा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कृषि से जुड़े क्षेत्र में लगातार बेहतर कार्य हो रहे है। बिहार सरकार दूसरी हरित क्रांति लाने के प्रयास में जुट गयी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बिहार के बारे कहा था की बिहार में दूसरी हरित क्रांति की पूरी संभावना है और जिस तरह से बिहार कृषि के क्षेत्र बढ़ रहा है, इससे अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार होगी। बिहार को कृषि में आगे बढ़ने और औद्योगीकरण की ओर बढ़ने के लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है।


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वर्तमान में, हमारे किसान देखते हैं कि पिछले सीजन में किसी विशेष उपज के लिए उन्हें क्या कीमत मिली थी। उदाहरण के लिए, यदि सरसों से उन्हें अच्छी कीमत मिलती है, तो हर कोई उसी की खेती करना पसंद करता है।  लेकिन जिस तरह से सरकार फल फूलों को उपजाने के लिए सब्सिडी दे रही है उससे किसानों का आत्मबल मजबूत हो रहा है और साथ ही बिहार में किसानों कि हालात में भी सुधार हो रहा हैं।
सेना में 18 साल नौकरी करने के बाद, गेंदे की खेती कर कमा रहे हैं लाखों

सेना में 18 साल नौकरी करने के बाद, गेंदे की खेती कर कमा रहे हैं लाखों

विगत कुछ दिनों में फूलों की खेती किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही हैं, जिसका मुख्य कारण कम लागत और बढ़िया मुनाफा है। पूरे भारत में गुलाब से लेकर सूरजमुखी और अन्य फूलों की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। किसान पारंपरिक खेती से फूलों की खेती की तरफ ज्यादा रुझान दिखा रहे हैं, जिसका मुख्य कारण कम लागत में अच्छा मुनाफा बताया जा रहा है। फूलों की खेती में जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है, वह है गेंदा की खेती। किसानों का कहना है, कि गेंदे की खेती में काफी अच्छा मुनाफा है। किसान यह भी बता रहे हैं, कि गेंदे की खेती में लागत कम है और इसे करना भी अन्य फूलों की खेती से आसान है। आज इस लेख में गेंदे की खेती करने वाले उस पूर्व सैनिक की कहानी बताएंगे जो विगत कुछ दिनों से गेंदा की खेती के लिए काफी चर्चित हो रहे हैं।

कौन है गेंदा की खेती करने वाला चर्चित किसान

गेंदा की खेती कर चर्चित होने वाले किसान जमशेदपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर रहने वाला एक आदिवासी बताया जा रहा है। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि यह किसान पूर्व में 18 साल तक सैनिक के तौर पर सेवाएँ दे चुके हैं। 18 साल सेना में सेवा देने के बाद एरिक मुंडा नामक व्यक्ति अब गेंदा की खेती कर काफी चर्चित हो रहे हैं।


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क्या कहते हैं एरिक मुंडा

गेंदा की खेती कर चर्चित होने वाले किसान एरिक मुंडा का कहना है, कि इसी खेती से वो अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दे पा रहा है। वो कहते हैं, कि इसी खेती की कमाई की वजह से उनके बच्चों ने इंजीनियरिंग, बीकॉम(B.Com) की पढ़ाई की। गौरतलब है, कि उनके बच्चों ने पढ़ाई करने के बाद भी कहीं नौकरी करने की जगह उसी फूल की खेती करना उचित समझा और आज उनके सभी बच्चे उनके साथ फूल की खेती कर रहे हैं। एरिक मुंडा का कहना है, कि ये बच्चे उन किसानों के लिए मिसाल हैं, जो अभी भी नौकरी की तलाश में है या फिर बेरोजगार हैं।


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एरिक मुंडा 18 साल तक देश की सेवा करने के बाद जब वापस आए, तो वह दलमा के तराई वाले इलाकों में फूल की खेती करना शुरू किया। एरिक मुंडा के पुत्र अनीश मुंडा का कहना है, कि वह अपने पिता से प्रभावित होकर उन्हीं के साथ फूल की खेती शुरू कर दिए हैं। अनीश मुंडा यह भी कहते हैं, कि वह अपने पिता की तरह फूल की खेती में अपना भविष्य भी देख रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज का यह चर्चित किसान ने कभी मात्र चार एकड़ में गेंदे की खेती शुरू की थी और आज लाखों लाख मुनाफा कमा रहे हैं। एरिक मुंडा किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत है, जो आज भी नौकरी की तलाश कर रहे हैं या फिर बेरोजगार हैं।


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कई बीमारियों में गेंदे के रस का इस्तेमाल

गेंदे की बढ़ती मांग को देखते हुए भी किसान इसकी खेती की तरफ रुझान कर रहे हैं। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि गेंदे के फूल के रस का इस्तेमाल बहुत सारी बीमारियों में किया जाता है। किसान यह भी बताते हैं, कि अगर आपके पास एक हेक्टेयर खेती योग्य जमीन है तो आप हर साल लगभग छः लाख की कमाई कर सकते हैं।
ग्लैडियोलस फूलों की खेती से किसान भाई होंगे मालामाल

ग्लैडियोलस फूलों की खेती से किसान भाई होंगे मालामाल

ग्लैडियोलस एक बहुत ही सुन्दर फूल है जो ज़्यादातर कलकत्ता, कलिंगपोंग, मणिपुर और श्रीलंका में बड़ी मात्रा में उगाया जाता है। इस फूल को लोग कट फ्लावर के रूप में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन फूलों के पौधे 2 से लेकर 8 फीट तक ऊंचे होते हैं। ग्लैडियोलस के फूल कई तरह के रंगों में निकलते हैं। पेड़ की एक दंडी में या तो एक रंग के अन्यथा 2 या तीन रंगों के फूल एकसाथ निकलते हैं। पेड़ की एक स्पाईक या एक दंडी में 15 से 25 फूल तक आ सकते हैं। बहुरंगी किस्मों के साथ-साथ फूलों का आकार और फूल के लम्बे दिनों तक तरोताजा बने रहने के कारण ग्लैडियोलस फूलों की मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है। भारतीय उपमहाद्वीप में यह फूल का पौधा तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि ग्लैडियोलस फूल का पौधा हर मौसम में अपना प्रसार करता है। फूल देता है। इसकी खेती हिमालय की जलवायु के साथ-साथ तराई के मैदानों और पहाड़ी इलाकों में बेहद आसानी से की जा रही है। ग्लैडियोलस के फूलों को गमलों, सड़कों, बगीचों और पार्कों में उगाने से उस जगह की रमणीयता बढ़ जाती है।
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अगर वर्तमान में देखा जाए तो दुनिया भर में ग्लैडियोलस फूलों की 260 प्रजातियां पाई जाती हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ये फूल एशिया, यूरोप, दक्षिण अफ्रीका और उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका में भारी मात्रा में पाए जाते हैं। सजावट के साथ-साथ ग्लैडियोलस के फूलों का औषधीय रूप में भी उपयोग किया जाता है। इन फूलों का इस्तेमाल दस्त और पेट की गड़बड़ी के उपचार में किया जाता है। इनके फूल पेड़ की दंडी पर एक बार खिलने पर 15 दिनों तक खिले रहते हैं। ग्लैडियोलस एक लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'तलवार'। इसके फूलों का आकार तलवार जैसा होता है। इन दिनों अगर भारतीय महाद्वीप की बात करें तो ग्लैडियोलस फूलों का उपयोग गुलदस्ते बनाने में, शादी और पार्टी आदि कार्यक्रमों में किया जाता है। ग्लैडियोलस की कुछ अद्वितीय विशेषताओं के कारण बाजार में इसकी मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

ग्लैडियोलस फूलों को उगाने के लिए चाहिए इस तरह की भूमि और जलवायु

वैसे तो ग्लैडियोलस के फूलों की खेती करने के लिए हर तरह की मिट्टी उपयुक्त होती है। लेकिन यदि बलुई दोमट मृदा जिसका Ph मान 5.5 से 6.5 के मध्य हो, ऐसी मिट्टी इन फूलों के उत्पादन में बेहतर परिणाम दे सकती है। साथ ही इसके के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जहां सूरज की रोशनी दिन भर रहती हो और पानी के निकासी की उचित व्यवस्था हो। ग्लैडियोलस फूलों की खेती के लिए न्यूनतम तापमान 16 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है। इनके पेड़ों को बरसात से सुरक्षित रखना चाहिए। पेड़ों पर तेज धूप लगने के कारण ये पेड़ ज्यादा फूलों का उत्पादन कर सकते हैं।

ऐसे करें भूमि की तैयारी एवं बुवाई

खेत की 2 से लेकर 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद मध्य नवंबर से मध्य दिसम्बर के बीच ग्लैडियोलस के कंदों की अलग-अलग क्यारियों में बुवाई करें। बुवाई करते समय हर कंद के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखना आवश्यक है। इसके साथ ही कंदों को 5 सेमी की गहराई में बुवाई करना चाहिए। क्यारियों के अलावा मेड़ो की लाईन में भी कंदों की बुवाई की जा सकती है। इससे पेड़ों में निंदाई गुड़ाई, बुवाई, उर्वरक देना, मिट्टी चढ़ाना आदि बेहद आसानी से हो सकता है। ग्लैडियोलस की फसल में कम से कम 4 से 5 बार तक निंदाई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है। इसके साथ ही कम से कम दो बार पौधों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए। इससे पेड़ को मजबूती मिलती है और पेड़ हवा से गिरने से बच जाते हैं, इससे किसानों को नुकसान नहीं होता।

ऐसे दें खाद एवं उर्वरक

खेत में सड़ी-गली गोबर की खाद 5 कि.ग्रा. प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डालें। इसके साथ ही खेत की जुताई करते समय नाईट्रोजन 30 ग्रा., फास्फोरस 20 ग्रा., पोटाश 20 ग्रा. प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डाल दें। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर की दर से 200 किग्रा नाईट्रोजन, 400 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 200 कि.ग्रा. पोटाश उर्वरक के रूप में खेत में डालें।

इस प्रकार से करें ग्लैडियोलस की फसल में सिंचाई

ग्लैडियोलस की फसल में 10 से 15 दिनों के बीच सिंचाई करते रहें। इसके अलावा गर्मियों के दिनों में हर 5 दिन में सिंचाई करें। सिंचाई करने के बाद ध्यान रखें कि खेत या क्यारी में पानी भरा न रहे। खेत में सिर्फ पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए।

ऐसे करें इस फसल में कीटों व रोगों की रोकथाम

इस फसल में झुलसा रोग, कंद सड़न रोग एवं पत्तियों के सूखने की बीमारी लगना एक आम बात है। इन रोगों के नियंत्रण के लिए किसान भाई डाईथेन एम 45, बाविस्टीन अथवा बेलनेट के घोल का 10 से 12 दिन के अंतराल पर छिडक़ाव कर सकते हैं। इसके अलवा कीटों की बात की जाए तो इसमें माहू एवं लाल सुंडी का हमला होता है, जिनसे निपटने के लिए किसान भाई रोगोर 30 ई. सी. को पानी में मिलाकर स्प्रे की सहायता से छिड़काव करें।
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फूलों की तुड़ाई

बुवाई के 65-90 दिनों के बाद पेड़ फूल देने लगते हैं। इन फूलों की तुड़ाई पुष्प दंडिका के साथ करें तथा पुष्प दंडिका को पानी की बाल्टी में डुबो कर रखें। इससे पुष्प लंबे समय तक तरोताजा बने रहेंगे। फूलों की तुड़ाई करने से पहले अगर सिंचाई कर दी जाती है तो फूलों में पानी का प्रवाह बना रहता है और फूल आसानी से मुरझाते नहीं हैं।

ग्लैडियोलस की भारत में उपयोग की जाने वाली किस्में

वैसे तो दुनिया में ग्लैडियोलस की बहुत सारी किस्में उपयोग की जाती हैं। लेकिन भारत में अग्निरेखा, मयूर, सुचित्रा, मनमोहन, सपना, पूनम, नजराना, अप्सरा, मनोहर, मुक्ता, अर्चना, अरूण और शोभा किस्में प्रसिद्ध है। भारत में किसान भाई ज्यादातर इन्हीं किस्मों के कंदों की बुवाई करते हैं।
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ग्लैडियोलस की खेती में लगने वाली लागत

ग्लैडियोलस की खेती में मुख्य रूप से कंदों की लागत गिनी जाती है। इसकी खेती में एक एकड़ में 1 लाख कंद लगाए जाते हैं और एक कंद की कीमत 3 से लेकर 5 रुपये के बीच होती है। इस हिसाब से एक एकड़ खेत में कंदों की बुवाई में 3 से लेकर 5 लाख रुपये तक का खर्चा आ सकता है।
इस तरीके से किसान अब फूलों से कमा सकते हैं, अच्छा खासा मुनाफा

इस तरीके से किसान अब फूलों से कमा सकते हैं, अच्छा खासा मुनाफा

भारत में फूलों का अच्छा खासा बाजार मौजूद है। किसान के कुछ किसान फूलों की खेती करके अच्छा खासा लाभ कमाते हैं। साथ ही, कुछ किसान बिना फूलों का उत्पादन किये बेहतरीन आमदनी करते हैं। 

इस तरह के व्यापार से भी बेहतरीन मुनाफा लिया जा सकता है। भारत के किसान रबी, खरीफ, जायद सभी सीजनों में करोड़ों हेक्टेयर में फसलों का उत्पादन करते हैं। उसी से वह अपनी आजीविका को भी चलाते हैं। 

किसानों का ध्यान विशेषकर परंपरागत खेती की ओर ज्यादा होता है। हालाँकि, विशेषज्ञों के अनुसार किसान पारंपरिक खेती के अतिरिक्त फसलों का भी उत्पादन कर सकते हैं। 

वर्तमान में ऐसी ही खेती के संबंध में हम चर्चा करने वाले हैं। हम बात करेंगे फूलों की खेती के बारे में जिनका उपयोग शादी से लेकर घर, रेस्टोरेंट, दुकान, होटल, त्यौहारों समेत और भी भी बहुत से समारोह एवं संस्थानों को सजाने हेतु किया जाता है। 

फूलों की सजावट में प्रमुख भूमिका तो होती ही है, साथ ही अगर फूलों के व्यवसाय को बिना बुवाई के भी सही तरीके से कर पाएं तो खूब दाम कमा सकते हैं।

फूलों के व्यवसाय से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं

भारत के बाजार में फूलों का अच्छी खासी मांग है। फूलों का व्यापार को आरंभ करने के लिए 50 हजार से एक लाख रुपये का खर्च आता है। मुख्य बात यह है, कि फूलों के इस व्यवसाय को 1000 से 1500 वर्ग फीट में किया जा सकता है।

फूल कारोबार से जुड़े लोगों ने बताया है, कि कृषि की अपेक्षा फूलों के व्यवसाय से जुड़ रहे हैं। तो कम धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। 

यदि इसके स्थान की बात की जाए तो 1000 से 1500 वर्ग फीट भूमि ही व्यवसाय करने हेतु काफी है। इसके अतिरिक्त फूलों को तरोताजा रखने हेतु एक फ्रिज की आवश्यकता होती है। 

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फूलों के व्यवसाय में कितने मानव संसाधन की आवश्यकता पड़ेगी

किसान यदि फूलों का व्यवसाय करने के बारे में सोच रहे हैं, तो उसके लिए कुछ मानव संसाधन की आवश्यकता भी होती है। क्योंकि फूलों की पैकिंग व ग्राहकों के घर तक पहुँचाने हेतु लोगों की आवश्यकता पड़ती है। 

फूल की खेती करने वाले किसानों से फूलों की खरीदारी करने के लिए भी सहकर्मियों की जरूरत अवश्य होगी। भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों की आवश्यकता पड़ती है। 

इसलिए समस्त प्रकार के फूलों का प्रबंध व्यवसायी को स्वयं करना होगा। फूलों को काटने, बांधने एवं गुलदस्ता निर्मित करने के लिए भी कई उपकरणों की जरूरत पड़ेगी।

इस प्रकार बढ़ाएं फूलों का व्यवसाय

सामान्यतः हर घर में जन्मदिन, शादी, ब्याह जैसे अन्य समारोह होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठान हो अथवा घर लोग सुबह शाम पूजा अर्चना में फूलों का उपयोग करते हैं। 

अगर फूलों का कारोबार करते हैं, तो प्रतिष्ठान एवं ऐसे परिवारों से जुड़कर अपने कारोबार को बढ़ाएं। किसी प्रतिष्ठान, दुकान एवं घरों पर संपर्क करना अति आवश्यक है। 

उनको अवगत कराया जाए कि ऑनलाइन अथवा ऑनकॉल फूल भेजने की सुविधा भी दी जाती है। आप अपने फूलों के व्यापार को सोशल मीडिया जैसे कि व्हाटसएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि के माध्यम से भी बढ़ा सकते हैं। 

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सर्वाधिक मांग वाले फूल कौन से हैं

दरअसल, बाजार में सैंकड़ों प्रकार के फूल उपलब्ध हैं। परंतु, सामान्यतः समारोहों में रजनीगंधा, कार्नेशन, गुलाब, गेंदा, चंपा, चमेली, मोगरा, फूल, गुलाब, कमल, ग्लैडियोलस सहित अतिरिक्त फूलों की मांग ज्यादा होती है।

फूलों से आपको कितनी आमदनी हो सकती है

हालाँकि बाजार में समस्त प्रकार के फूल पाए जाते हैं, इनमें महंगे एवं सस्ते दोनों होते हैं। दरअसल, गुलाब और गेंदा के भाव में ही काफी अंतर देखने को मिल जाता है। कमल का फूल ज्यादा महंगा बिकता है। 

कमल से सस्ता गुलाब व गुलाब से सस्ता गेंदा होता है। जिस कीमत पर आप किसानों से फूल खरीदें, आपको उस कीमत से दोगुने या तिगुने भाव पर अपने फूलों को बेचना चाहिए। 

अगर आप किसी फूल को 2 रुपये में खरीदते हैं, तो उसको आप बाजार में 6 से 7 रुपये के भाव से बाजार में आसानी से बेच सकते हैं। किसी विशेष मौके पर फूल का भाव 10 से 20 रुपये तक पहुँच जाता है। 

गेंदे के फूल का भाव 50 से 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्राप्त हो जाता है। साथ ही, गुलाब का एक फूल 20 रुपये में बिक रहा है। 

वहीं मोगरा का फूल 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक भाव प्राप्त हो रहा है। जूलियट गुलाब के गुलदस्ते का भाव तकरीबन 90 पाउंड मतलब की 9,134 रुपये के लगभग है।

गंदे पानी में उगाई जाने वाली सब्जियां और फसल बन सकती है आपकी जान का खतरा

गंदे पानी में उगाई जाने वाली सब्जियां और फसल बन सकती है आपकी जान का खतरा

हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे। सोनीपत में नेशनल हाईवे-1 के नजदीक एक गांव से बहुत ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां पर किसान अपनी गेहूं की फसल की सिंचाई करने के लिए गंदे नाले का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं। यह पानी ना सिर्फ शहर की गंदगी को अपने अंदर समेटे हुए हैं, बल्कि इसमें आसपास के फैक्ट्री (Factory)  की गंदगी भी जमा रहती है। इस गांव में कुछ समय से कैंसर के मामले बहुत ज्यादा और आश्चर्यजनक तौर पर बढ़ रहे थे। जब एक्सपर्ट्स ने इस पर एक नजर डाली तो आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका सबसे बड़ा कारण गंदे पानी में उगाई गई गेहूं की फसल से बने हुए खाने का सेवन करना था। पर्यावरण विभाग और सिंचाई विभाग के आला अधिकारी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। सरकार दावा कर रही है, कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा पानी की सिंचाई की सुविधा दी गई है। लेकिन यहां कोई भी देख सकता है, कि किस तरह नालियों के जरिए गेहूं की फसल तक यह गंदा पानी पहुंचाया जा रहा है। यहां ट्यूबेल की व्यवस्था नहीं है और इस नाले के पानी से ही वह बाजरा और गेहूं की फसल करते हैं। अगर डिप्टी मेडिकल सुप्रीटेंडेंट की बात मानें तो नालों में जाने वाले पानी में फैक्ट्रियों का पानी भी होता है, जो फसल के लिए बहुत खतरनाक है। वहीं सेहत के लिए भी बहुत ज्यादा खतरनाक है। इससे सीधे तौर पर कैंसर जैसी बीमारियां होना संभव हैं। इसके अलावा खुजली और चर्म रोग भी हो सकते हैं। डॉक्टर ने कहा कि यह सिंचाई विभाग और पर्यावरण विभाग की कमी है और उसे रोकना चाहिए।
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कृषि विभाग भी पूरी तरह से गंदे पानी के उपयोग को कृषि में नहीं रोक पा रहा है और किसान भी जानकारी के अभाव में गंदे नाले के पानी में सब्जियां व अन्य फसल उगाते जा रहे हैं। एक बार जब गंदे पानी में उगाई हुई सब्जियां ठेले पर बेची जाती हैं, तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन जाती हैं।

गंदे पानी से उगी सब्जियों के उपयोग से बचें

हम सभी जानते हैं, कि गंदे पानी में उगाई जाने वाली सब्जियों में खतरनाक कैमिकल होते हैं। जो सीधे तौर पर मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के बाद कई तरह की बीमारियों का कारण बन जाते हैं। ऐसी सब्जियों के उपयोग से पेचिश, श्वांस संबंधी रोग व शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसलिए गंदे पानी से उगाई जाने वाली सब्जियों के उपयोग से बचना चाहिए।

प्रतिबंधित है नाले के पानी से फसल उगाना

किसानों को इस बात की जानकारी होना जरूरी है, कि नाले के पानी से फसल उगाना लीगल तौर पर प्रतिबंधित है। कहा जाता है, कि इस पानी का इस्तेमाल केवल फूलों की खेती के लिए किया जा सकता है। गंदे पानी में पाए जाने वाले हैवी मैटल स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इसलिए किसानों को भी इस बात की जिम्मेदारी लेते हुए इसके उपयोग को बंद कर देना चाहिए नहीं तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं।
जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

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भारत में किसान परंपरागत खेती से इतर अब नई तरह ही खेती पर भी फोकस कर रहे हैं, ताकि वो भी समय के साथ अपने व्यवसाय से अच्छी खासी कमाई कर सकें। इसलिए इन दिनों किसान भाई अब बागवानी से लेकर फूलों की खेती करने लगे हैं। भारत में फूल हर मौसम में पाए जाते हैं जो किसानों के लिए पूरे साल भर आमदनी का स्रोत बने रहते हैं। ऐसी ही एक फूल की खेती के बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं। जिसे जरबेरा के फूल के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग सजावट के साथ-साथ औषधीय कामों में भी होता है। यह हर मौसम में पाया जाने वाला फूल है। इसके फूल पीले, नारंगी, सफेद, गुलाबी, लाल रंगों के साथ कई अन्य रंगों में भी पाए जाते हैं। इससे यह फूल बेहद आकर्षक लगते हैं। इस फूल के लंबे डंडे होने के कारण इसका उपयोग शादी समारोह में सजावट के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा देश की फार्मेसी कंपनियां भी इसके पौधे का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए करती हैं। सुंदर फूल होने के कारण बाजार में इन फूलों का जबरदस्त मांग रहती है। लोग फूलों का उपयोग मंदिरों में सजावट के लिए भी करते हैं।

इस प्रकार की जलवायु में उत्पादित होता है जरबेरा

जरबेरा के लिए सामान्य तापमान वाले मौसम की जरूरत होती है। मतलब सर्दियों में जहां इसके पौधे को धूप की जरूरत होती है वहीं गर्मियों में इसके पौधे को छांव की जरूरत होती है। अगर ये परतिस्थियां नहीं मिलती तो जरबेरा का उत्पादन कम हो सकता है। इसलिए इसकी खेती को पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ये भी पढ़े: पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

इस तरह से करें खेत की तैयारी

वैसे तो जरबेरा की खेती हर मिट्टी में हो सकती है लेकिन रेतीली भुरभुरी मिट्टी इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। इस खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.0-7.2 के बीच होना चाहिए। खेत तैयार करने के पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद एक बेड तैयार कर लें जिसकी चौड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए, साथ ही ऊंचाई 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी में जैविक खाद भी डालें।

इस समय करें पौधों की बुवाई

जरबेरा के पौधों की बुवाई फरवरी से लेकर मार्च तक की जा सकती है, इसके साथ ही दूसरे मौसम में इसकी बुवाई सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की जा सकती है। बुवाई करते समय ध्यान रहे कि पौधे का ऊपरी भाग मिट्टी से 3 सेंटीमीटर ऊपर होना चाहिए। साथ ही एक पौधे से दूसरे पौधे की की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए और कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर हिनी चाहिए। मिट्टी के एक बेड पर पौधों की 2 कतारें आसानी से लगाई जा सकती हैं।

ऐसे करें सिंचाई

जैसे ही जरबेरा के पौधों की बेड पर रोपाई करें उसके तत्काल बाद पानी देना चाहिए। इसके बाद एक माह तक लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे की जड़ों की पकड़ मिट्टी में बन सकेगी। शुरुआत में जरबेरा के पौधों को प्रतिदिन सिंचाई की जरूरत होती है।

ऐसे करें जरबेरा के फूलों की तुड़ाई

खेती शुरू करने के करीब 12 सप्ताह बाद जरबेरा में फूल आने लगते हैं। लेकिन फूलों की तुड़ाई 14 सप्ताह के बाद करना चाहिए। सुबह या शाम के समय तुड़ाई करने पर फूलों की गुणवत्ता बनी रहती है। इसलिए फूलों की तुड़ाई के लिए इसी समय का चुनाव करें। जरबेरा के फूलों को डंठल के साथ तोड़ना चाहिए। इसके डंठल की लंबाई 50-55 सेंटीमीटर तक होती है। एक पौधा एक साल में करीब 45 फूल तक उत्पादित कर सकता है। तुड़ाई के ठीक बाद फूलों को पानी से भारी बाल्टी में रखना चाहिए ताकि फूल मुरझाने न पाएं।
ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत

ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत

रजनीगंधा और ऑर्किड (orchids) दोनों खूबसूरत फूल हैं जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन फूलों की खेती देश के हर प्रदेश में संभव है और इससे किसान भाई जबरदस्त पैसे कमा सकते हैं। राजस्थान का नेशनल पार्क रणथंभौर इन फूलों से महक रहा है। यह नेशनल पार्क बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है। अब बाघों के संरक्षण के साथ-साथ राज्य का उद्यानिकी विभाग यहां पर फूलों की खेती को भी प्रोत्साहित कर रहा है। इसके लिए उद्यानिकी विभाग ने आस पास के किसानों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दी है। यह ट्रेनिंग रणथंभौर के आस पास के किसानों के साथ-साथ पूरे सवाई माधोपुर जिले के किसानों को दी जा रही है। इस जिले में पहले से फूलों की खेती की जाती रही है। पहले यह जिला गुलाब की खेती के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन अब पूरे जिले में गुलाब की खेती बंद हो गई है। इस बीच उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि सरकार के द्वारा फूलों की खेती से आस पास के किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

सरकारी नर्सरी में उगाए जा रहे हैं कई तरह के फूलों के पेड़

जिले की सरकारी नर्सरी "फूल उत्कृष्टता केंद्र" में इन दिनों डच रोज, रजनीगंधा, जरदरा , हजारा, गुलाब, गुलदाउदी जैसे फूलों के पेड़ उगाए जा रहे हैं। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि नर्सरी में खुले में तैयार होने वाले फूलों के पेड़ों के साथ टनल एवं शेडनेट में तैयार होने वाले फूलों के पेड़ों की खेती भी की जा रही है। इनके साथ ही कई विदेशी फूलों के बीज भी मंगवाए गए हैं जिनकी यहां पर खेती की जायेगी। ये भी पढ़े: ग्लैडियोलस फूलों की खेती से किसान भाई होंगे मालामाल

बाजार में है रजनीगंधा की जबरदस्त डिमांड

रणथंभौर एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल है यहां पर दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। इसलिए यहां के होटल संचालक विदेशी पर्यटकों को खुशनुमा माहौल देने के लिए रजनीगंधा और आर्किड जैसे फूलों का इस्तेमाल करते हैं। इन फूलों का इस्तेमाल होटल के कमरों को सजाने में किया जाता है। इसके अलावा होटल में होने वाली अन्य गतिविधियों में भी फूलों का जबरदस्त इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए सवाई माधोपुर से उत्पादित होने वाले फूलों की लोकल मार्केट में जबरदस्त मांग रहती है। इसके पहले इस मांग को गुलाब के फूलों के द्वारा पूरा किया जाता था। लेकिन अब गुलाब के फूलों की जगह रजनीगंधा और आर्किड के फूलों ने ले ली है। सवाई माधोपुर जिले में पहले 5 प्रकार के गुलाब के पेड़ उगाए जाते थे। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि पहले इस सरकारी नर्सरी का रेवेन्यू शून्य था। लेकिन अब इस नर्सरी का रेवेन्यू 10 लाख रुपये के पार जा चुका है। स्थानीय लोग इस नर्सरी से फूलों के पौधों के साथ-साथ अन्य पौधे भी ले जाते हैं। जिससे नर्सरी में बिकवाली बढ़ती है और नर्सरी को अतिरिक्त आमदनी होती है। ये भी पढ़े: जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई सजावट के अलावा फूलों का उपयोग बहुत सारे उत्पादों को तैयार करने में किया जाता है। फूलों की मदद से गुलाब जल, गुलकंद, शर्बत, इत्र, अगरबत्ती आदि तैयार किए जाते हैं। इससे बाजार में फूलों की मांग बढ़ती है। जिससे किसान भाई ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फूलों की खेती करके अच्छा खास लाभ कमा सकते हैं।